Thursday, July 5, 2012

प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो



प्राण, ह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।
                     





हरिवंश राय बच्चन



मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
आज कुंतल छाँह मुझ पर तुम किए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,
वह सुधा के स्वाद से जाए छला क्या,
जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।


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12 comments:

  1. बच्चन जी की रचना पढकर मन खुश हुआ अपार,
    इसी तरह पढवाते रहे,प्रेम जी, बहुत बहुत आभार,,,,,

    MY RECENT POST...:चाय....

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  2. Replies
    1. धन्यवाद। कुछ घरेलू समस्याओं के कारण समय नही मिल पाता है जिसके कारण किसी के भी ब्लॉग पर नियमित नही हो पा रहा हूं । इसके लिए मुझे भी अफसोस रहता है ।

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  3. बहुत आभार सुन्दर कविता पढ़ाने का..

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  4. बहुत सुन्दर रचना!
    शेअर करने के लिए आभार!

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    1. शास्त्री जी आपका आभार ।

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  5. इस सुन्दर रचना को हम तक पहुंचाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...

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    1. संध्या शर्मा जी, मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका आभार प्रकट करता हूं । धन्यवाद ।

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  6. मिश्रा जी,
    यह मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है कि मेरा पोस्ट आपके दिल में थोड़ी सी जगह पा सका। आभारी हूं । धन्यवाद ।

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  7. सुन्दर रचना...बच्चन जी को पढ़ाने के लिए आभार ...

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  8. bacchan jee ko to baat hi alag thi... grand salute

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