Friday, January 21, 2011

समय़ का पालन

राधामोहन सुप्रसिद्ध पंडित थे। उस दिन शाम के समस्तीपुर के जमींदार की अध्यक्षता में उनका सम्मान संपन्न होने वाला था।उनका इरादा था कि उस अवसर पर एक संदेशात्मक कविता सुनाऊँ। वे इसी विषय को लेकर तीव्र रूप से सोचने लगे। ‘सुर्योदय-अस्तमन, दिन- रात, पूर्णिमा, अमावास, गीष्म, पावस, सबके सब निश्चित समय पर आते है। प्रकृति का हर अणु समय का पालन करता हैं।मनुष्य़ को अन्य जंतुओं से अलग करता है,अनुशासन। अनुशासन का प्रथम और अंतिम चरण है समय का पालन। प्रगति चाहने वाले हर व्यक्ति का कर्तव्य समय का पालन।उन्होने सोचा कि यह संदेश आज के वातवरण के अनुकुल रहेगा,क्योंकि मंत्री,नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सभी अपनी अपनी ड्यूटी पर विलंब से पहुँचते हैं और समय का मूल्य नही समझते ।इसलिए इस अर्थ की कविता रचने के लिए वे दीर्घ सोच में पड़ गए।
उस दिन दोपहर को उन्होने जमींदार के यहां स्वादिष्ट भोजन किया,जिसकी वजह से उन्हे थोड़ी देर से निकलना पड़ा।थोड़ी दूर जाने के बाद घोड़ागाड़ी की गति बढ़ गयी। वे उस वेग को देखकर जरा घबरा गए और उन्होंने गाड़ीवाले से कहा कि वह गाड़ी का वेग कम करे।पहले ही देरी हो चुकी है।और अभी और दूर जाना है-गाड़ीवान ने कहा।सभा में पहुचने में देर होगी, इसलिए वहां दस साल पहले ही पहुंचना उचित भी तो नही है-पंडित ने कहा।
इस पर गाड़ीचालक हँस पड़ा और गाड़ी की गति धीमी कर दी।

5 comments:

  1. बहुत ही रोचक कथा ..

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  2. ानुशासन किसी भी व्यवस्था का एक जरूरी अंग है। मगर आज तो शायद लोग अनुशासन का अर्थ ही भूल गये हैं। अच्छा प्रसंग है। धन्यवाद।

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