Friday, December 31, 2010








रामधारी सिंह दिनकर मेरे प्रिय कवि रहे हैं। उनकी स्मृति में यह कविता प्रस्तुत कर रहा हूं.। शायद मेरा यह प्रयास आप सब के दिल में थोड़ी सी जगह पा जाए। आप सबको मेर प्रयास कैसा लगा,अवगत कराएगें ताकि भविष्य में इस तरह की कविताएं प्रस्तुत करता रहूं। नववर्ष-2011 की अशेष शुभकामनाओं के साथ—प्रेम सागर सिंह, कोलकाता।
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बच्चे
ऱामधारी सिंह’‘दिनकर’
जीचाहता है सितारों के साथ
कोई सरोकार कर लूँ
जिनकी रोशनी तक हाथ नही पँहुचते,
उन्हे दूर से प्यार कर लूँ।

जी चाहता है फूलों से कहूँ,
यार ! बात करो।
रात के अँधेरे में यहां कौन देखता है,
जो अफवाह फैलायेगा
कि फूल भी बोलते हैं,
अगर कोई दर्द का मारा मिल जाए,
तो उससे अपना भेद खोलते हैं ?

आदमी का मारा आदमी
कुत्ते पालता है।
मगर मैं घबराकर
बच्चों के पास जाना चाहता हूँ,
जहाँ निर्द्वन्ध हो कर बोलूँ,
हँसुँ गाऊँ,चुहलें मचाऊँ
और डोलूँ।

बूढों का हलकापन
बू़ढों को पसन्द नहीं आता हैं ।
मगर, बच्चे उसे प्यार करते हैं।
भगवान की कृपा है
कि वे अभी गंभीरता से डरते हैं।

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