मेरे उस दिन न होने पर भी मेरी कविताएं तो होंगी! गीत होंगे ! सूरज की ओर मुंह किए खडा कनैल का झाड़ तो होगा!
Tuesday, December 28, 2010
अपनी अपनी
अपनी अपनी पसंद
जीवन में जो कुछ भी पाया, खोया, अनुभव किया, हारा, जीता या कभी-कभी जीत कर भी हार
गया और कभी-कभी हार कर भी जीत गया। इसी संदर्भ में ऱामधारी सिंह की निम्नलिखित
कविता के आलोक में आज तक कुछ पाता रहा हूं, एवं शायद भविष्य में भी पाता.............
हार
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
हार कर मेरा मन पछताता है।
क्योंकि हारा हुआ आदमी
तुम्हे पसंद नहा आता है।
लेकिन लडाई मे मैने कोताही कब की ?
कोई दिन याद है,
जव मै गफलत मै खोया हूं
यानी तीर-धनुष सिरहाने रख कर
कहीं छांव में सोया हूं
हर आदमी की किस्मत मे लिखी है।
जीत केवल संयोग की बात है ।
किरणें कभी- कभी कौंध कर
चली जाती हैं,
नहीं तो, पूरी जिंदगी
अंधेरी रात हैं।
किरणें कभी- कभी कौंध कर
ReplyDeleteचली जाती हैं,
नहीं तो, पूरी जिंदगी
अंधेरी रात हैं...
बेहतरीन अभिव्यक्ति
आभार।
.
दुख उतना हारने का नहीं होता है, जितना न लड़ने का होता है।
ReplyDeleteप्रेम जी , दिनकर जी की ये कविता हार से निराश न होने की प्रेरणा देती हुई है। अपने कमिटमेँट के प्रति सन्तुष्टि होना बड़ी बात है न कि ये हार जीत। बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहर आदमी की किस्मत मे लिखी है।
ReplyDeleteजीत केवल संयोग की बात है ।
sach kaha aapne....jeet ekdum sanyog hai...:)
हर आदमी की किस्मत मे लिखी है।
ReplyDeleteजीत केवल संयोग की बात है ।
किरणें कभी- कभी कौंध कर
चली जाती हैं,
नहीं तो, पूरी जिंदगी
अंधेरी रात हैं।
......फिर भी उम्मीद की किरण ही तो है जो हर इंसान को जिन्दा बनाये रखती हैं ..
....बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ...आभार
नव वर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभ-कामनाएं
हर आदमी की किस्मत मे लिखी है।
ReplyDeleteजीत केवल संयोग की बात है ।
किरणें कभी- कभी कौंध कर
चली जाती हैं,
नहीं तो, पूरी जिंदगी
अंधेरी रात हैं।
सुन्दर प्रस्तुति...
हार कर मेरा मन पछताता है ।
ReplyDeleteक्योंकि हारा हुआ आदमी
तुम्हें पसंद नहीं आता है ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बड़े भाई!
ReplyDeleteन्यूटन के सिद्धांत पर आधारित बल की परिभाषा:
बल वह कारण है जो किसी वस्तु पर लगकर उसमें विस्थापन उत्पन्न करता है या करने की चेष्टा करता है.
बड़ी बात है विस्थापन की चेष्टा करना... सिर्फ विस्थापन ही हार जीत का पैमाना नहीं.. दिनकर जी भी यही कहना चाहते होंगे!!
bhut shi bat khi gai hai .
ReplyDeleteकिरणें कभी- कभी कौंध कर
ReplyDeleteचली जाती हैं,
नहीं तो, पूरी जिंदगी
अंधेरी रात हैं।
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और जो व्यक्ति उन प्रकाश रूपी किरणों को पकड़ लेता है ...उनका अनुसरण कर लेता है तो फिर जीवन प्रकाशमय हो जाता है .....भावपूर्ण पंक्तियाँ ...शुक्रिया
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteदिनकर मेरे पसंदीदा कवि हैं आभार इस प्रस्तुति का.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteनव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें
kabhi samay mile to yahan //shiva12877.blogspot.com per bhe aayen.