Monday, September 19, 2011

मौन समर्थन


मौन समर्थन

प्रेम सागर सिंह

जब भी नैराश्य की कालिमा में खोने लगता हूँ

जब लगने लगता है- निरूद्देश्य भटकता हूँ,

जब मन भर आता है,

पलकें लुढकना चाहती हैं,

हृदय के सूनेपन को वेदनाएँ भरना चाहती हैं

जब मन का सूरज अस्त होने लगता है,

थके हृदय का पसीना आँखों में चमकता है।

जब बोझिल थका सिर

किसी प्रेमी कंधे पर टिकना चाहता है-

उत्साह बुझ-बुझ सा जाता है,

उमंग सूख-सूख सा जाता है,

तुम्हारे हृदय का मौन समर्थन,

तुम्हारी वाणी का अनिर्णीत उल्लास,

आँखों से बरस-बरस पड़ता प्रेमाग्रह,

तुम्हारे पोर-पोर में रचा-बसा प्रेम,

तुम्हारे हृदय का निर्मल उच्छवास,

भर देता है मेरे रोम-रोम में प्रेम.

तुमने मुझमें कुछ देखा है या नही

यह तो तुम्हारा मन ही जानता है।

पर मैंने तुममे जो कुछ भी देखा है

उसे मेरा दिल ही जानता है

मैं तुम बिन कितना विकल रहता हूँ,

यह तो रब ही जानता है ।

---------------------------------------------------------