Sunday, February 14, 2010

अमर रहे हम सब का प्यार

अमर रहे हम सब का प्यार

आज वैलेनटाइन डे के अवसर पर मैं उन समस्त प्रेमी,प्रेमिकाओं को स्वर्णिम भविष्य के निर्माण की आधारशिला का सृजन करने के लिए अंतर्मन से अपना अशेष आशीष देकर उनकी भावनाओं, कच्चे ,पक्के मन के प्रेम सरोवर में उठती नाना प्रकार की लघु उर्मियों को सही दिशा में स्थिर हो जाने के लिए ईश विनयी हूं।

आज के दिन को निर्णायक दिन के रूप में लें एवं प्रति वर्ष गत वर्ष में बटोरे, कहे अनकहे प्यार को स्पष्ट भावों एवं संवेदनाओं के माध्यम से एक दूसरे के साथ बांटने का प्रयास करें। हो सकता है आपका सही, निस्वार्थ और ईमानदारी से प्रस्तुत किया गया थोडा सा यह प्रयास आपके चिर प्रतीक्षित साथी को प्रणय सूत्र में बध जाने के लिए अभिप्रेरित कर दे। इस असंबोघित अभिव्यक्ति को मैं उन तमाम लोगो के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं जो आज के दिन को परंपरागत तरीके से मनाते आ रहे है।. दोस्तों !आज के दौर में प्रेम की परिभाषा बदल गयी है, अंदाज बदल गया है, शैली बदल गयी है, एवं बदल गया है लोगों का दिल जो परिवर्तन की तलाश में निरूद्देश्य एक विकल्प के लिए भागते रहता है।अंतत सुख की खोज में शांति और समय की खोज में जिंदगी के हसीन पल को खोते रहने की प्रक्रिया में स्वंय भी अस्तित्व विहीन हो जाता है।सुझाव है-प्रेम करो किंतु ऐसा प्रेम मत करो जिसके कारण अपने पराये बन जाए,सामाजिक मान्यता न मिलने के साथ-साथ दिल भी खुद गवाही न दे। यह चिर शावश्त सत्य है, अकाट्य है। आत्म मंथन करो, फिर इस पथ पर आगे बढो। भगवान आप सबको सही दिशा दे। मंगलमय कामनाओं के साथ ईश से मेरी विनती रहेगी कि आज का दिन समस्त सुधी प्रेमियों के लिए चिर स्मरणीय रहे।

Friday, February 12, 2010

अभाव के द्वार पर

अभाव के द्वार पर

प्रेम सागर सिंह

जब हम पहुंचते है अभाव के द्वार पर,

प्रेम की कमी खल ही जाती है,

और व्यथित हो जाता है मन ।

क्‍योंकि,

वह भाव जिसकी आस लिए,

हम पहुंचते हैं दर किसी के,

वहां से गायब सा हो जाता है ।

स्‍वागत की वर्षों पुरानी

तस्‍वीर आज बदल सी गई है ।

लोगों की संवेदनाओं के तार,

अहर्निश झंकृत होने के बजाए,

निरंतर टूटते और बिखरते जा रहे हैं ,

पहले बंद दरवाजे खुल जाते थे ,

आज खुले दरवाजे भी बंद हो जाते हैं ।

अभाव के द्वार पर प्रणय गीत,

मन को अब बेजान सा लगता है ।

गृहस्‍थ जीवन का भार ढो रहे,

संवेदनशील व्‍यक्ति के हृदय में भी,

प्रेम का वह भाव गोचर होता नहीं,

क्‍यों‍कि

वह स्‍वयं इतना बोझिल रहता है

कि, दूसरे बोझ को ढोने के लिए,

वह इस योग्‍य होता ही नहीं ।

चल रही शीतलहरी की एक अलसाइ शाम को,

जब हल्की धूप में तन्हा बैठा यादों के अतल में,

आहिस्ता-आहिस्ता जाने की कोशिश कर रहा था

कि अचानक भूली बिसरी स्मृतियों के झरोखे से

उस रूपसी की याद विचलित कर गयी थी मुझको ।

एक खूबसूरत अरमान को मन में सजाए,

फिर से एक बार उसे देखने की आश लिए,

पहुंच गया था उस सुंदरी के दर पर,

हाथ संकोच भाव से दस्तक के लिए बढ गया

बंद दरवाजा भी एक आवाज से खुल गया।

सोंचा मन ही मन,

खुशहाली से भरी जिंदगी होगी उसकी,

धन, धान्य और शांति से संपन्न होगी,

पर वैसा कुछ नजर नही आया,

जिसकी पहचान मेरी अन्वेषी आखों ने किया,

कहते हैं,

अभाव किसी परिचय का मुहताज नही होता,

शायद कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ,

नजदीक से देखा ,समझा ओर अनुभव किया,

लगा उसकी जिंदगी के सपने हैं टूटने के कगार पर

हालात को समझनें में देर न लगी

क्योंकि

मैं पहुंच गया था अभाव के द्वार पर,